Wednesday 13 March 2013

"स्त्री विमर्श के आर्थिक आयाम"

महिला परिवार की वह इकाई है , जिसे सदियों से पुरुष समाज , वंश उत्पादन की मशीन समझता आया है , स्त्री देंह की यह विशेषता , उसकी सबसे बड़ी ताकत भी है और सबसे बड़ी कमजोरी भी , जब कोई स्त्री माँ बनती है , तो उसी क्षण से वह अगले बीस पच्चीस सालों तक के लिए , अपनी संतान के लिए जवाब देह व  ज़िम्मेदार हो जाती है , इसीलिए प्रकृति ने उसे ममतामयी , कोमल और अतिशय संवेदनशील बनाया है , ताकि वह अपने इस मुख्य दायित्व को भली भांति पूरा कर सके , अपने मान को अपने स्वाभिमान को , अपनी अस्मिता को , अपने सारे कष्टों को , परे रख कर वह केवल अपनी संतान को पलता बढ़ता देखना चाहती है , उसे सभ्य नागरिक बनाना चाहती है और एक संस्कारवान सफल पुरुष भी इन सारे कर्तव्यों के निर्वहन के लिए उसे समय सुरक्षा व पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है जो संतान का पिता उसके लिए जुटाता है , जब तक यह समीकरण इमानदारी से चलता रहता है तब तक अपनी एक , संतोषजनक स्थिति स्त्री घर में बनाये रखती है , किन्तु प्रायः पुरुष का कार्यक्षेत्र घर से बाहर होने के कारण उसकी उच्छ्रंखल वृतियाँ अंकुश से परे रहती हैं , और आर्थिक दायित्व भारवहन के कारण , उसकी आदिम एकाधिकार  प्रवृत्ति परिवार पर हावी रहती है , जहाँ परिवार में पुरुषों ने महिलाओं का भरपूर साथ दिया है वहाँ स्त्री ने भी जन्मों-जन्मों तक ऐसे पुरुष को पाने की सदैव कामना की है पर ऐसे उत्कृष्ट उदाहरण हमारे समाज में संक्षिप्त हैं ।

समस्या का दूसरा स्याह पहलू यह है , कि महत्वाकांक्षी महिला विशेषतः अदम्य महत्वाकांक्षी महिला जब भी परिवार , समाज घर से ऊपर अपने करियर और सपनों को , प्राथमिकता देती है , तब उसके रास्ते में उसी परिवार  , समाज द्वारा रोड़े अटकाए जाते हैं , जिसके लिए वह सदैव ही मिटती रही है , उसके अस्तित्व को पूरी तरह कुचलने के लिए , सदियों पुरानी मान्यताएं रूढ़ियाँ इस कार्य में एक अहम् भूमिका निभाती हैं , पारिवारिक दायित्वों को निभाते हुए अपने करियर के सर्वोच्च शिखर पर बैठी हुई ऐसी कई महिलाओं को मै निजी  रूप से जानती हूँ जिन्हें अपने उस सफलता के बिंदु तक पहुँचने  के लिए अतिशय संघर्ष , पारिवारिक अवमानना व तिरस्कार झेलना पड़ा है अत्यंत उपेक्षा और जिम्मेदारियों के प्रबल प्रवाह में जाने कितनी ऐसी महिलाएँ भी हैं जो अपने  करियर से संन्यास लेकर घर की जिम्मेदारियों में ही स्वयं को स्वाहा  कर देतीं हैं । चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर अचानक वापस मुड़ जाना , घरेलु जीवन को अपनाकर संतुष्ट और स्वयं को सौभाग्यशाली समझना , यह केवल स्त्रियाँ ही कर सकतीं हैं । क्या उनकी वास्तव में यही नियति होनी चाहिए ? घर को उपेक्षित समझते हुए सफलता की सीढियां चढ़ना उन्हें प्रायः अपराध बोध से ग्रस्त कर देता है यह जन्म-जन्मान्तरों के संस्कार ही हैं जो वे अपना सहज जीवन घर परिवार की चार दिवारी में ही तलाशतीं हैं ।

परिवार का आर्थिक प्रबंधन देखा जाए तो प्रायः पुरुष के ही हाथ में ही होता है आय चाहे स्त्री की हो या पुरुष की व्यवस्था व  विपरण पुरुष का ही अधिकार क्षेत्र बन जाता है , इस देश में कितनी किरण बेदी , किरण शौ मजुमदार , चन्दा कोचर , इंद्रा नुई हैं , अत्यधिक कर्मठ ज़िम्मेदार और प्रभंधन में अति कुशल महिलाओं की एक बड़ी संख्या , जागरूकता और सहयोग के अभाव में सोई पड़ी है , क्यों नहीं हम उस शक्ति को उद्बोधित करते ? क्यों नहीं हम उन्हें उसका अधिकार , स्थान और सम्मान दिलाने में सहयोग करते ? कब तक हिन्दू समाज , दहेज़ व वंशवाद के नाम पर महिलाओं को कुचलता रहेगा अपने जघन्य अपराधों को धर्म और परंपरा के मुखौटे में छुपाता रहेगा ? कब तक मुस्लिम समाज शरियत की आड़ में स्त्रियों को परदे के पीछे घुटाता रहेगा अशिक्षा और बहुविवाह को इस्लामी जामा  पहनाता रहेगा ?

आज जिधर देखिये , महा-नगरीय जीवन शैली में बूढ़े लाचार माँ-बाप घरों में अकेले रह रहे हैं जिन बच्चों को जीवन की सारी जमा पूँजी लगाकार पढाया लिखाया , वे विदेश जा बसे वंश होते हुए भी वे निर्वंश की तरह जी रहे हैं पूरी तरह नौकरों पर आश्रित हैं ऐसे वृद्ध आये दिन दुर्घटनाओं के शिकार बन रहे हैं उनकी न्रशंस हत्याएं हो रहीं हैं अपराधी प्रवत्ति के व्यक्ति ऐसे अकेले दुर्बल दम्पतियों की तांक में रहते हैं जो विरोध के लायक न हों , पितृसत्ता वाले समाज में माता पिता से अधिक मजबूर और लाचार कोई और नहीं रह गया है ।

जो बेटियां घरों में अवहेलना की शिकार हैं और बोझ की तरह पाली गयीं हैं आज वही बेटियां माँ बाप को सहारा देने के लिए आगे आ रहीं हैं , वे विवाह के बाद भी ससुराल पक्ष और मैके में अच्छा ताल मेल रख कर , दोनों परिवारों की बेहतर देख भाल भी कर रहीं हैं ।

नारी प्रकृति की अदभुत कृति है । वह केवल पशुता से ही हारती है अन्यथा जीवन की किसी भी बड़ी से बड़ी चुनौती का सामना वो साहस के साथ सकती है और प्रत्येक  क्षेत्र में पूर्णतः सक्षम है यह युग नारी की उपलब्धियों का ही युग कहा जाएगा वह जीतेगी , वह अवश्य जीतेगी , वह लगातार जीत रही है वह मीरा कुमार है सुषमा स्वराज है प्रतिभा पाटिल और सोनिया गांधी है ममता बनर्जी मायावती जैसा जीवंत हस्ताक्षर भी वही है ।




No comments:

Post a Comment